Sunday, August 1, 2010

बचपन,,,,,

कुछ पल अतीत में चले,
बचपन की कुछ यादों से खेले ,

बड़ी मुश्किल से आँख खुल पाती थी,
फिर भी माँ नहाने ले चली जाती थी ,,

बड़ी देर तक पानी से खेला करते थे,
सर्दी हो जायेगी पापा कुछ यु डांट दिया करते थे ,,

ऱोज नए कपड़ो के लिए तंग किया करते थे,
वो जो न मिले तो नंगा ही घूम लिया करते थे ,,

पापा के साथ जब नाश्ता करते थे,
खिड़की से दोस्त मैच का इशारा करते थे,,

पेट के दर्द का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी लिया करते थे,
पापा जो चले गए दौड़ कर खेलने चले जाया करते थे,,

हर ऱोज एक पडोसी का सिर्र फोड़ा करते थे,
डंडा लेकर मारने वो चले आया करते थे,,

देख कर उन्हें हमे छोड़ कर सब भाग जाया करते थे,
अपनी आँखें बंद कर के हम मार खाने हाथ बढाया करते थे ,,

मासूम सा चेहरा और प्यारी सी मुस्कान जब वो देखा करते थे,
डंडा फ़ेंक हमें पप्पी दे जाया करते थे,,

खेलते खेलते पापा के आने का वक़्त भूल जाते थे,
देर होती थी फिर भी पापा से पहले घर पहुँच जाते थे,,

अपनी पसंद के पकोड़े देख कर रहा नहीं जाता था,
बिना हाथ धोये एक पकोड़ा अन्दर चले जाया करता था,,

पापा जब डांटना शुरू कर देते थे,
नींद का बहाना बनाकर माँ के पास चले जाया करते थे ,

जब लोरियां गाकर हमे माँ सुलाया करती थी,
पड़ोसियों की नींद खुल जाया करती थी,,

दरवाज़ा खटखटाकर वो थक जाया करते थे,

और हम प्यारी सी नींद में चले जाया करते थे ,प्यारी सी नींद में चले जाया करते थे,,